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साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी
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आहार किया। भोजन परोसने वाले साधु ने चुपड़ी हुई बाजरे की रोटी के लिए निवेदन किया किन्तु गुरुदेव ने इंकार कर दिया। अन्य दो तीन पदार्थों की मनुहार होने पर भी गुरुदेव ने उसे स्वीकार नहीं किया। उसी समय एक साधु खीर लेकर आया । निवेदन किया गया कि यह गर्म है अतः सर्दी के लिए उपयुक्त है । गुरुदेव ने दृढ़ता के साथ कहा- 'क्या गर्म होने पर गरिष्ठता कम हो जाती है ? रोग की अवस्था में संयम अधिक लाभप्रद है ।' संयम की भावना पुष्ट होती है तो हर स्थिति में व्यक्ति खाद्य-संयम के अभ्यास को नहीं छोड़ सकता। मैं पेट को नाराज करके जीभ को प्रसन्न करने की बात नहीं सोच सकता। खाद्य-संयम के बारे में पूज्य गुरुदेव की अनुभवपूत वाणी उन सबके लिए प्रेरक है, जो खाने को ही जीवन का लक्ष्य मानकर चलते हैं— 'मैं मानता हूं खाने-पीने के असंयम से मोक्ष और स्वर्ग का सुख तो दूर, इस जीवन में भी सुख नहीं मिल सकता। दो चार दिन कम भोजन करने अथवा बिलकुल न करने से किसी का कोई नुकसान नहीं होता। एक दिन भी अधिक खा लिया तो नुकसान हो सकता है । नहीं खाने से व्यक्ति नहीं मरता पर खाने के असंयम से मौत का वरण कर सकता है । '
पूज्य गुरुदेव ने अपने जीवन से पूरी मानव जाति को संयम का सक्रिय प्रशिक्षण दिया तथा अणुव्रत के माध्यम से 'संयम ही जीवन है' का घोष मुखर करके अनेक सामाजिक, राजनैतिक एवं जागतिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया।
आत्मानुशासन
'मैं न तो राजनैतिक नेता हूं और न मेरे पास कानून और डंडे का बल है। मैं तो अपनी आत्मा का नेता हूं। मेरे पास केवल आत्मानुशासन का आध्यात्मिक बल है।' गणाधिपति तुलसी के मुख से निःसृत ये पंक्तियां उनके अपरिमेय आत्मबल एवं आत्मानुशासन की चेतना के जागरण की सूचना दे रही हैं। हर व्यक्ति की आत्मा में शक्ति का अखूट खजाना है पर बिना आत्मानुशासन के उसका उपयोग नहीं किया जा सकता। जो व्यक्ति इंद्रिय, मन या परिस्थिति की अनुचित मांग को अस्वीकार करना नहीं जानता, वह अपनी शक्ति का संवर्धन एवं संरक्षण नहीं कर सकता ।