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________________ ३१५ साधना की निष्पत्तियां बैलूंगा। तुम भी साथ-साथ ध्यान करो। वहां जो अन्य साधु थे, उन्हें भी निर्देश दिया कि ध्यान करना हो तो बैठ जाओ, अन्यथा दूसरे कमरे में जाकर लेट जाओ। इस निर्देश पर मुनि मधुकर, मुनि बालचंद, मुनि हीरालाल, मुनि मुदितकुमार आदि ध्यान में बैठने के लिए तैयार हो गए। मैं पट्ट से नीचे उतरा और बैठ गया। सोचा-मुंह किधर किया जाए? जिस ओर पहले मुंह था, उसी दिशा में, यानी उत्तराभिमुख होकर मैंने इस बार सामूहिक ध्यान किया। डेढ़ से सवा दो-ढाई बजे तक यह क्रम चला। आनन्द की श्रृंखला अब तक टूटी नहीं थी, फिर भी मैंने ध्यान पूरा किया। महाप्रज्ञजी को लेटने का निर्देश देकर भेज दिया। उनके आग्रह पर मैं भी थोड़ी देर लेट गया। लेटने के बाद भी नींद नहीं आई। प्रातः चार बजे उठा तो नींद न आने का बिलकुल भी भार नहीं था। . १८ फरवरी को प्रात: "सातड़ा" से चले और आठ कि.मी. चलकर बीनासर पहुंचे। विगत तीन दिनों में चलने से जितनी थकान का अनुभव हुआ, उस दिन नहीं हुआ।मन पूरी तरह प्रसन्न रहा। शरीर में भी हल्कापन रहा। यह सब क्या था? नहीं बता सकता। पूज्य गुरुदेव कालूगणी की स्मृति के कई चमत्कार अनुभव में हैं। उस दिन बिना स्मृति के अनायास ही जो चमत्कार हुआ, वह विलक्षण है। सातड़ा' की वह अपूर्व रात फिर कब आएगी, इस प्रतीक्षा में श्रीमद राजचन्द्र की एक पंक्ति कानों में गूंजने लगी है- "अपूर्व अवसर एहवो क्या रे आवशे।" ____ आत्मशक्ति का जागरण शक्तियों का अजस्र प्रवाह होता है। जिस व्यक्ति को जागरण का अवबोध हो जाता है, उसका प्रत्येक अनुभव और चिंतन आत्मा की परिक्रमा करता है। पूज्य गुरुदेव ने साधना के विविध प्रयोगों से अपनी आत्मशक्ति को जगाने का प्रयत्न किया था। अपनी जागृत आत्मा के सहारे उन्होंने जन-जन में आत्म-जागरण का शंखनाद किया था। आत्मसंयम साधकों के अनुभव की कहानी संयम की स्याही से लिखी जाती है। असंयमी व्यक्ति की आत्मशक्ति चुक जाती है। संयम और दमन को एक नहीं माना जा सकता। संयम में उपशम होता है पर दमन में उत्ताप होता है। संयम में व्यक्ति की स्वतंत्रता सुरक्षित रहती है, जबकि दमन
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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