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साधना की निष्पत्तियां की प्रेरणा दे रहा है। आंखें खोलकर इधर-उधर देखा। कुछ भी दिखाई नहीं दिया। सब संत लेटे हुए थे। मुनि बालचन्द पट्ट के पास बैठा था। शायद मुझे भ्रम हो गया, यह सोच मैंने पुनः आंखें बंद कर लीं। फिर वैसा ही अहसास हुआ। मैं उठकर बैठ गया और नमस्कार महामन्त्र का जप करने लगा। जप करते-करते मैं उसी में लीन हो गया। मुझे अतिरिक्त आनन्द का अनुभव हुआ। एक ओर मुझे आश्चर्य हो रहा था तो दूसरी ओर मैं बार-बार कुछ पद्यों का स्मरण कर रहा था
"सुत्ता अमुणी, मुणिणो सया जागरंति।".. या निशा सर्वभूतानां, तस्यां जागर्ति संयमी। यस्यां जाग्रति भूतानि, सा निशा पश्यतो मुनेः॥"
इन पद्यों का स्मरण करते समय मुझे नींद न आने की बिल्कुल चिन्ता नहीं थी। चिन्तन था तो इतना ही कि यह सब हो क्या रहा है? मैं फिर जप में तल्लीन हो गया। . इसी बीच मुनि बालचन्द बोला- "ग्यारह बज रहे हैं।" मैंने जप छोड़कर ध्यान करना शुरू कर दिया। ध्यान शुरू करते ही एक बार मैंने सोचा-आज नींद न आने का क्या कारण हो सकता है? शरीर पर ध्यान केन्द्रित किया तो सब कुछ सामान्य था। न श्वास लेने में किसी प्रकार का अवरोध, न सिर में भारीपन, न शरीर में दर्द और न कोई अन्य कारण। फिर भी आंखों में नींद नहीं थी। मैं श्वास-प्रेक्षा करने लगा। ध्यान में मन अच्छी तरह रम गया। एक घण्टे का समय कब पूरा हो गया, पता ही नहीं चला। आंखें खोली तो कमरे में मौन व्याप्त था। बड़ा अच्छा लगा। उस मौन को तोड़ते हुए मुनि बालजी ने कहा- "क्या बात है? स्वास्थ्य कैसा है? मुनि मधुकरजी को जगा दूं?" मैंने कहा- “चिन्ता की कोई बात नहीं है। स्वास्थ्य ठीक है। मुझे अभी ध्यान करना है।" ध्यान में एक क्षण का व्यवधान भी अच्छा नहीं लगा। इस बार मैं पद्मासन लगाकर ध्यान में बैठ गया।
ध्यान जमा तो ऐसा जमा कि मानो मन के सारे विकल्प समाप्त हो गए। निर्विकल्प समाधि की अवस्था। मैं अभिभूत हो गया। कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है? पर कुछ न कुछ ऐसा घटित हो रहा