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________________ साधना के शलाकापुरुष : गुरुदेव तुलसी ३१२ तू समुज्वल विमल उत्पल, पंक में हा! क्यों फंसा है? सर्वतंत्र स्वतंत्र बंदी, सोच यह कैसी दशा है? जीवन के विशिष्ट अवसरों पर वे अपने अनुयायियों को आत्मजागृति की विशेष प्रेरणा देते थे। अपने ४१वें जन्मदिन पर वे आत्मविभोर होकर कहने लगे- 'आप लोग मेरा जन्मदिन मनाते हैं, उसका एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए- आत्मजागरण की प्रेरणा लेना और जीवन-विकास के पथ पर आगे बढ़ना। मेरी दृष्टि में आपके उल्लास और उत्साह की सार्थकता तभी होगी, जब आप अपने जीवन को त्याग और संयम की साधना में आगे बढ़ाएंगे।' व्यक्तिगत पत्रों के माध्यम से भी पूज्य गुरुदेव आत्मजागृति एवं आत्म-प्रकाश की प्रेरणा देते रहते थे। मुनि श्री लोकप्रकाश जी को दिए गए पत्र की कुछ पंक्तियां अत्यन्त मार्मिक हैं शिष्य लोकप्रकाश! कितना सुंदर नाम है तुम्हारा। लोक को प्रकाशित करने वाला। पर स्मरण रहे, लोक-प्रकाश से पहले आत्म-प्रकाश बनना पड़ता है। आत्मप्रकाशी ही लोकप्रकाशी होता है। वैसा बनने के लिए तीन विशेष गुण ग्रहणीय होते हैं १. समता, २. शमशीलता, ३. श्रमशीलता। जिसने इस त्रयी को आत्मसात कर लिया, वह निश्चय ही आत्मप्रकाशी बन गया। (आचार्य तुलसी के पत्र भाग २ पृ. ९५) पूज्य गुरुदेव का अनुभव था कि जागरण का अंतिम बिंदु ही आत्मदर्शन का प्रथम बिंदु है। जहां केवल प्रकाश है, आनन्द है, शान्ति है और है चेतना का समग्र अस्तित्व। यह दुर्लभ क्षण किसी भाग्यशाली व्यक्ति को ही उपलब्ध होता है। उस उपलब्ध क्षण के प्रति सचेत रहना तो और भी अधिक दुर्लभतम योग है। १७ फरवरी १९८७ का घटना प्रसंग उनकी आत्मजागृति एवं आत्मानुभव का अद्भुत एवं प्रेरक प्रसंग कहा जा सकता है। पूर्ण जागृति की अवस्था में प्राप्त आध्यात्मिक अनुभव उन्हीं की भाषा में पठनीय है- 'लगभग साढ़े नौ बजे का समय था। मैं पूर्ण जागृत अवस्था में था। अचानक ऐसा अहसास हुआ कि कोई मुझे उठकर बैठने
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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