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साधना की निष्पत्तियां भविष्य सामने है। भविष्य की दृष्टि से मैंने कुछ संकल्प स्वीकार किए हैं। मैं चाहता हूं कि समाज में योग-साधना की ओर विशेष गति हो।"
यहां ऐतिहासिक क्रम से जन्मदिन पर किए गए कुछ वर्षों के संकल्पों की झांकी प्रस्तुत की जा रही है। ये संकल्प केवल वैयक्तिक ही नहीं, सामाजिक, धार्मिक, राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय सभी क्षेत्रों से जुड़े हुए हैं। इन संकल्पों में पूज्य गुरुदेव की साधना और आत्मनिष्ठ चैतन्य का
आलोक प्रतिबिम्बित हो रहा है। हर आत्मार्थी साधक के लिए ये संकल्प मील के पत्थर ही नहीं, अखूट पाथेय भी प्रस्तुत करने वाले हैं। विशिष्ट दिनों में संकल्पों को दोहराने से अनुयायियों की चेतना में भी उत्साह की लहर दौड़ जाती थी।
... ४७वें जन्मदिन पर पूज्य गुरुदेव ने तीन कार्यों पर विशेष ध्यान केन्द्रित करने का संकल्प व्यक्त किया था
* जैन आगमों का व्यवस्थित संपादन। * अणुव्रत आंदोलन को और अधिक व्यापक बनाना। * जनोपयोगी साहित्य का निर्माण।
सन् १९६३ में ५०वें जन्मदिन पर जन्मस्थली लाडनूं में अग्रिम वर्ष के लिए कुछ संकल्प करते हुए गुरुदेव ने कहा- "मैं अपना जन्मदिन इन संकल्पों को स्वीकार करते हुए मनाना चाहता हूं
सूत्रों के पद्यों का सार्थ चिन्तन करना। ध्यान अनिवार्य रूप से करना। * शाम के अतिरिक्त सुबह भी मौन करना। * मितभाषिता।
बहम की वृत्ति को अधिक प्रश्रय न देना। * दूध सर्वसुलभ न हो तो महीने में अमुक दिनों तक नहीं लेना। * शाम के भोजन में ऊणोदरी अवश्य करना। * दो बार से अधिक नहीं खाना और उसमें भी मिठाई व तेल की
वस्तुओं से यथासंभव दूर रहना।"