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________________ २७३ साधना की निष्पत्तियां सकल भाव ये ज्ञेय हैं, ज्ञाता है यह आत्म। ज्ञाता की अनुभूति ही, कहलाती अध्यात्म॥ ज्ञाता को संयोग-वियोग की परिस्थिति प्रभावित नहीं कर सकती क्योंकि वह जानता है कि आत्मतत्त्व ही ऐसा है, जिसका न संयोग होता है और न वियोग। पूज्य गुरुदेव ने द्रष्टाभाव के विकास से हर परिस्थिति में स्वयं को संतुलित और मध्यस्थ रखा था। अण्णहाणं पासए परिहरेजा' आयारो का यह सूक्त उनके जीवन में इतना आत्मसात् हो चुका था कि उनका चलना, खाना-पीना, सोना-जगना आदि सब क्रियाएं सामान्य व्यक्ति से अतिरिक्त प्रतीत होती थीं। वे पदार्थ का उपयोग भोग के लिए नहीं, अपितु जीवन-यात्रा को उपयोगी बनाने के लिए करते थे। पूज्य गुरुदेव कहते थे कि वस्तु का भोग करते समय दृष्टिकोण भिन्न हो तो भोग उपयोग बन जाता है। दृष्टिकोण गलत होता है तो भोग बंधन का निमित्त बन जाता है।" देखने का अभ्यास सधने के बाद व्यक्ति अपनी कमजोरियों के प्रति जागरूक हो जाता है। महावीर कहते हैं- 'जो अपने क्रोध, मान, माया, लोभ आदि को देखता है, वह उनसे मुक्त हो जाता है।" पूज्य गुरुदेव इसी तथ्य को अनुभव की भाषा में बोलते थे- 'जिस दिन मनुष्य अपने भीतर झांक लेता है, आत्मा को उत्तेजना देने वाले तत्त्वों को देख लेता है, तब वह अपनी आंतरिक बीमारी का उन्मूलन कर लेता है।' जिस दिन व्यक्ति यह देख लेता है कि राग-द्वेष हमारे नहीं हैं, हम पर आधिपत्य जमाए बैठे हैं, उसी दिन से इनकी प्रभुसत्ता समाप्त होने लगती है। पूज्य गुरुदेव ने जागृत साक्षीभाव से राग-द्वेष की चेतना को क्षीण करने का प्रयत्न किया। द्रष्टाभाव का विकास हुए बिना रूपांतरण घटित नहीं हो सकता। बाह्य दर्शन भी रूपांतरण में महान् निमित्त बनता है फिर आंतरिक दर्शन की तो बात ही क्या है? इतिहास ऐसे अनेक घटना-प्रसंगों से भरा पड़ा है, जिनसे स्पष्ट है कि महापुरुषों की दृष्टि पड़ते ही क्रूर से क्रूर व्यक्ति में रूपांतरण घटित हो गया। देखने में कितनी शक्ति है, इसे पूज्य गुरुदेव के शब्दों में इस घटना-प्रसंग से जाना जा सकता है- 'दो दिन पहले की बात है। एक श्रावक आया। सहमता हुआ बोला- 'गुरुदेव! दो मिनिट का
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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