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________________ २०१ साधना की निष्पत्तियां लेखक हूं, कलम चलाना मेरा काम है अतः किसी के प्रति सहज झुकने को तैयार नहीं हूं। मैं अच्छा खासा आलोचक हूं..... इन सबके बावजूद आचार्यश्री के व्यक्तित्व के प्रति मेरी सच्ची आत्मीयता है। वे सत्य की प्राप्ति में लगे हुए हैं। उनकी कुछ सीमाएं हैं, किन्तु वे किसमें नहीं होती, अस्तित्व मात्र में होती हैं । पर आचार्यश्री में उन पर चिपटे रहने का आग्रह नहीं है। लाखों व्यक्ति उनके पीछे लगे हुए हैं अतः कुछ बंधन सा हो जाता है किन्तु आचार्यश्री में तेज और सत्य की लगन है अत: वे इसे बंधन नहीं बनने देते।' . _ हर प्रतिकूल परिस्थिति को उनका निर्लिप्त एवं नि:संग व्यक्तित्व अनुकूलता में ढाल लेता था। राशमी गांव में विरोधी लोगों ने गुरुदेव को ठहरने के लिए स्थान नहीं दिया। आखिर एक स्थान पर ठहरने की व्यवस्था हो गयी। श्रद्धालु लोगों के मन में रोष उभर आया पर गुरुदेव ने उन्हें सम्बोध देते हुए कहा- "स्थान न देने पर हमें रोष क्यों हो? जिस दिन से हमने साधना-पथ स्वीकार किया हमारा कोई स्थान है ही नहीं। यदि यह जगह भी नहीं मिलती तो मैं वृक्ष के नीचे आनन्द से समय बिता देता। स्थान मिलने और न मिलने पर यदि खुशी या रोष आए तो फिर साधना ही क्या है? मेरी प्रकृति ही ऐसी है कि मैं किसी भी व्यक्ति या वस्तु में प्रतिबद्ध होकर व्यथा से विचलित नहीं होता।" _ व्यक्ति एवं वस्तु की प्रतिबद्धता की भांति साम्प्रदायिक प्रतिबद्धता भी व्यक्ति को दिग्मूढ़ कर देती है। केवल सम्प्रदाय में प्रतिबद्ध व्यक्ति सत्य के दर्शन नहीं कर सकता। पूज्य गुरुदेव एक सम्प्रदाय विशेष के अनुशास्ता थे पर साम्प्रदायिकता से कोसों दूर थे। वे मानते थे- 'व्यक्ति और वस्तु की प्रतिबद्धता से भी बड़ा खतरा है सम्प्रदाय की प्रतिबद्धता। जहां साधना की बात गौण हो जाए, आचार का पलड़ा हल्का हो जाए, उस संघ से प्रतिबद्ध रहकर साधक क्या पाएगा? साधना में सहयोग न मिलने पर भी केवल सुविधा के नाम पर किसी सम्प्रदाय से बंधकर रहना खतरा है। इस खतरे से वही बच सकता है, जो अप्रतिबद्धता की मूल्यवत्ता से परिचित होता है।' अप्रतिबद्ध दृष्टिकोण का ही फलित है कि उनके कार्यक्रम में समय-समय पर सभी धर्माचार्य उपस्थित होते थे और वे स्वयं
SR No.002362
Book TitleSadhna Ke Shalaka Purush Gurudev Tulsi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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