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________________ प्र०८-४] दशवकालिकसूत्रम् ठावइस्मामि ति अकाइयत्वं भवइ चउत्थं पयं भवइ ॥ ५॥ भवइ य एत्थ सिलोगो। नाणमेगग्ग-चित्रो य ठिओ ठावयई परं सुयाणि य अहिन्जिता रओ सुय-समाहिए ॥६॥ चउबिहा खलु तव-समाही भवइ, तं जहा।नो इहलोगट्टयाए तवमहिद्वेज्जा, नो परलोगट्टयाए तवमहिद्वेज्जा, नो कित्ति-वण-सह-सिलोगट्टयाए तवमहिटेजा, ननत्थ निज्जरट्टयाए तवमहिद्वेज्जा चउत्थं पयं भवइ ॥७॥ भवइ य एत्य सिलोगो। . विविह-गुण-तवी-रए ये निच्चं भवइ निरासए निज्जरदिए। तवसा धुणइ पुराण-पावर्ग जुतो सया तव-समाहिए ॥६॥ चउबिहा खलु आयार-समाही भवइ, तं जहा। नो इहलोगट्टयाए आयारमहिद्वेज्जा, ना परलोगढयाए आयारमहिनेजा, नो किति-वरण-सह-सिलोगट्रयाए आयारमहिउज्जा, ननत्थ आरहन्तेहिं हेजहिं आयारमहिद्वेज्जा चउत्थं पयं भवइ ॥ ९ ॥ भवइ य एत्थ सिलोगो। - १ य not in B, H हि. . २ B जुत्ते य सया. 5
SR No.002354
Book TitleDasveyaliya Sutta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorErnst Leumann, Walther Schubrin
PublisherAnandji Kalyanji Pedhi
Publication Year1932
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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