SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दशवकालिकसूत्रम्. [अ०८-४ ॥ नवममध्ययनम् ॥ चतुर्थ उद्देशकः ॥ सुयं मे आउस तेणं भगवया एवमक्खायं । इह खलु थेरेहिं भगवन्तेहिं चत्तारि विणय-समाहिद्राणा पन्नता ॥ कयरे खलु ते थेरेहिं भगवन्तेहिं चत्तारि विणय-समाहिदाणा पन्नता? इमे खलु ते थेरेहिं भगवन्तेहिं चत्तारि विणय-समाहिदाणा पन्नता, तं जहा। विणय-समाही सुय-समाही तव-समाही आयार-समाही ॥१॥ विणए सुए तवे य आयारे निचं पण्डिया। अभिरामयन्ति अप्पाणं जे भवन्ति जिइन्दिया ॥२॥ चउबिहा खलु विणय-समाही भवइ, तं जहा । अणुसासिज्जन्तो सुस्सूसइ, सम्मं संपडिवज्जइ, वेयमाराहयइ, न य भवइ अत-संपग्गहिए चउत्थं पर्य भवइ ॥३॥ भवइ य एत्थ सिलोगो। पेहेइ हियाणुसासणं, सुस्ससई, तं च पुणो अहिए। नयमाण-मरण मज्जइ विणय-समाही आययदिए॥४॥ __चउबिहा खलु सुय-समाही भवइ, तं जहा । सुर्य मे भविस्सइ ति अन्साइयत्वं भवइ, एगग्गचित्तो भविस्सामि ति अकाइयत्वं भवइ, अप्पाणं ठावइस्मामि ति अकाइयत्वं भवइ, ठिओ परं
SR No.002354
Book TitleDasveyaliya Sutta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorErnst Leumann, Walther Schubrin
PublisherAnandji Kalyanji Pedhi
Publication Year1932
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy