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अ० ५–१ ]
दशवेकालिकसूत्रम्
तं क्खि वित्तु न निक्विवे, आसएण न छड्डए । हत्थेण तं गहेऊणं एगन्तमवक्कमे ॥ ८५ ॥ एगन्तमवक्कमित्ता अचित्तं पडिलेहिया । जयं परिवेज्जा, परिदृष्प पडिक्कमे ॥ ८६ ॥ सिया य भिक्खु इच्छेज्जा सेज्जमागम्म भोतुयं । स- पिण्डपायमागम्म उडुयं पडिलेहिया ॥ ८७ ॥ विणएण पविसित्ता सगासे गुरुणी मुखी । इरियावहियमायाय आगओ य पडिक्कमे ॥ tt ॥ आभोएत्ताण नीसेसं अइयारं जह- क्कमं । गमणागमणे चेव भत्तपाणे व संजए ॥ ८९ ॥ उज्जुप्पनो अणुविग्गो अवक्खित्त्रेण चेयसा । आलोय गुरु-सगासे जं जहा गहियं भवे ॥ ९० ॥ न सम्ममालोइयं होज्जा पुब्विं पच्छा व जं कडं । पुणो पक्किमे तस्स, वोसिट्टो चिन्तए इमं ॥ ९१ ॥ अहो जिणेहिं असावज्जा वित्ती साहूण देसिया । मोक्ख-साहणहेउस्स साहु-देहस्स धारणा ॥ ९२ ॥ नमोक्कारेण पारेता करेत्ता जिण-संथवं । सकार्य पट्टवेज्ञाणं वीसमेज्ज खणं मुणी ॥ ९३ ॥ बीसमन्तो इमं चिन्ते हियम लाभमट्टि । जह मे अणुग्गहं कुज्जा साहूं, होज्जामि तारिओ ॥९४॥
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