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________________ २६ दशवेकालिकसूत्रम् जं जाणेज्ज चिराधोयं मईए दंसणेणं वा । पडिपुच्छिऊण सोचा वा जं च निस्तङ्कियं भवे ॥ ७६ ॥ अजीवं परिणयं नच्चा पडिगाहेज्ज संजए । अह सङ्कियं भवेज्जा आसाइत्ताण रोयए ॥ ७७ ॥ "थोवमासायणट्टाए हत्थगम्मि दलाहि मे । 66 मा मे अच्चम्बिलं पूई, नालं तरहं विणेत्तए " ॥ ७८ ॥ तं च अचम्लिं पूई नालं तरहं वित्तए । देन्तियं पडिया इक्वे, न मे कप्पइ तारिसं“ ॥ ७९ ॥ तं च होज्ज अकामेणं विमखेण पडिच्छियं । तं अपणा न पिबे, नो वि अन्नस्स दावए ॥ ८० ॥ एगन्तमवक्कमित्ता अचित्तं पडिलेहिया । जयं परिवेज्जा, परितृप्प पडिक्कमे ॥ ८१ ॥ सिया य गोयरग्ग-गओ इच्छेज्जा परिभोत्तुयं । कोदृगं भित्ति मूलं वा पडिलेहिताण फासूयं ॥ ८२ ॥ अरणुन्नवेत्तु मेहावी पडिच्छन्नम्म संवुडे । [अ० ५–१ हत्थगं संपमज्जित्ता तत्थ भुञ्जेज्ज संजय ॥ ८३ ॥ तत्थ से भुञ्जमाणस्स अट्टियं कण्टओसिया । तण कटु सक्करं वा वि अन्नं वा वि तहाविहं ॥ ४ ॥ तण-कटु- २ B तिरहं, s तरह. १ B दरिस ०. ३ s अञ्चि
SR No.002354
Book TitleDasveyaliya Sutta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorErnst Leumann, Walther Schubrin
PublisherAnandji Kalyanji Pedhi
Publication Year1932
Total Pages142
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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