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1. 13. 16.] आहत्तहीयज्झयणे जे कोहणे होइ जयभासी विओसियं जे उ उदीरएजा । अन्धे व से दण्डपहं गहाय अविओसिए धासइ पावकम्मी ॥ ५ ॥ जे विग्गहीए अन्नायभासी न से समे होइ अझञ्झपत्ते ।
ओवायकारी य हिरीमणे य एगन्तदिट्टी य अमाइरूवे ॥ ६ ॥ से पेसले सुहुमे पुरिसजाए जच्चन्मिए चेव सुउजुयारे । बहुं पि अणुसासिएँ जे तहच्चा समे हु से होइ अझञ्झपते ॥ ७ ॥ जे यावि अप्पं वसुमं ति भत्ता संखाय वायं अपरिक्ख कुजा । तवेण वाहं सहिउ त्ति मत्ता अन्नं जणं पस्सइ बिम्बभूयं ॥ ८ ॥ एगन्तकूडेण उ से पलेइ न विजई मोणपयसि गोत्ते । जे माणणडेण विउक्कसेज्जा वसुमन्नतरेण अवुज्झमाणे ॥ ९ ॥ जे माहणे खत्तियजायए वा तहुग्गपुत्ते तह लेच्छई वा । जे पवईए परदत्तभोई गोत्ते न जे थब्भइ माणबद्धे ॥ १० ॥ न तस्स जाई व कुलं व ताणं नन्नत्थ विजाचरणं सुचिण्णं । निक्खम्म से सेवइ गारिकम् न से पारए होइ विमोयणाए ॥ ११ ॥ निकिंचणे भिक्खु सुलहजीवी जे गारवं होइ सिलोगकामी । आजीवमेयं तु अबुज्झमाणो पुणो पुणो विपरियासुवेन्ति ॥ १२ ॥ जे भासवं भिक्खु सुसाहुवाई पडिहाणवं होइ विसारए य । आगाढपन्ने सुविभावियप्पा अन्नं जणं पन्नया परिहवेजा ॥ १३ ॥ एवं न से होइ समाहिपत्ते जे पन्नवं भिक्खु विउकसेजा । अहवा वि जे लाहमयावलित्ते अन्नं जणं खिसइ बालपन्ने ॥ १४ ॥ पन्नामयं चेव तवोमयं च निन्नामए गोयमयं च भिक्खू । आजीवगं चेव चउत्थमाहु से पण्डिए उत्तमपोग्गले से ॥ १५ ॥ मयाइँ एयाइँ विगिश्च धीरा न ताणि सेवन्ति सुधीरधम्मा। ते सव्वगोत्तावगया महेसी उच्चं अगोत्तं च गतिं वयन्ति ॥ १६ ॥