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सूयगडम्मि
[1.6.8से पन्नया अक्खयसागरे वा मदोदही वा वि अणन्तपारे । अणाविले वा अकसाइ मुक्के सके व देवाहिवई जुईमं ॥ ८ ॥ से वीरिएणं पडिपुण्णवीरिए सुदंसणे वा नगसव्वसेटे। सुरालए वा सि मुदागरे से विरायए नेगगुणोववेए ॥ ९ ॥ सयं सहस्साण उ जोयणाणं तिकण्डगे पण्डगवेजयन्ते । से जोयणे नवनवते सहस्से उद्भुस्सियो हेतु सहस्समेगं ॥ १०॥ पुढे नभे चिढइ भूमिवहिए जं सूरिया अणुपरिवट्टयन्ति । से हेमवण्णे बहुनन्दणे य जंसी रई वेययई महिन्दा ॥ ११ ॥ से पव्वए सद्दमहप्पगासे विरायई कञ्चणमढवण्णे । अणुत्तरे गिरिसु य पव्वदुग्गे गिरीवरे से जलिए व भोमे ॥१२॥ महीइ मज्झम्मि ठिए नगिन्दे पन्नायए सूरियसुद्धलेसे । एवं सिरीए उ स भूरिवण्णे मणोरमे जोयइ अचिमाली ॥१३॥ सुदंसणस्सेव जसो गिरिस्स पवुच्चई महओ पव्वयस्स । एओवमे समणे नायपुत्ते जाईजसोदसणनाणसीले ॥ १४ ॥ गिरीवरे वा निसहाययाणं रुयए व सेहे वलयाययाणं । तओवमे से जगभूइपन्ने मुणीण मझे तमुदाहु पन्ने ॥ १५ ॥ अणुत्तरं धम्ममुदीरइत्ता अणुत्तरं झाणवरं झियाइ । सुसुक्कसुकं अपगण्डसुकं संखिन्दुएगन्तवदायसुकं ॥ १६ ॥ अणुत्तरग्गं परमं महेसी असेसकम्मं स विसोहइत्ता । सिद्धिं गए साइमणन्तपत्ते नाणेण सीलेण य दंसणेण ॥ १७ ॥ रुक्खेसु नाए जह सामली वा जस्सिं रई वेययई सुवण्णा । वणेसु वा नन्दणमाहु सेई नाणेण सीलेण य भूइपन्ने ॥ १८॥ थणियं व सद्दाण अणुत्तरे उ चन्दो व ताराण महागुभावे । गन्धेसु वा चन्दणमाहु सेहँ एवं मुणीणं अपडिनमाहु ॥१९॥