________________
सूयगडम्मि [1. 4. 2. 18एवं बहुहिं कयपुव्वं भोगत्थाए जेभियावन्ना । दासे मिए व पेसे वा पसुभूए व से न वा केई ॥ १८ ॥ एवं खु तासु विनप्पं संथवं संवासं च वजेज्जा । तजातिया इमे कामा वजकरा य एवमक्खाए ॥ १९ ॥ एयं भयं न सेयाए इइ से अप्पगं निरुम्भित्ता । नो इत्थं नो पसुं भिक्खु नो सयं पाणिणा निलिजेजा ॥२०॥ सुविसुद्धलेसे मेहावी परकिरियं च वजए नाणी । मणसा वयसा काएणं सव्वफाससहे अणगारे ॥ २१॥ इच्चेवमाहु से वीरे धुयरए धुयमोहे से भिक्खु । तम्हा अज्झत्तविमुद्धे सुविमुक्के आ मोक्खाए परिव्वएज्जासि ॥२२॥
ति बेमि ॥ इत्थिपरिन्नज्झयणं चउत्थं
निरयविभत्तियज्झयणे पञ्चमे
1. 5.1.
पुच्छिस्सहं केवलियं महेसिं कहं भितावा नरगा पुरत्था । अजाणओ मे मुणि बूहि जाणं कहिं नु वाला नरगं उवेन्ति ॥१॥ एवं मए पुट्ठ महाणुभावे इणमोऽब्बवी कासवे आसुपन्ने । पवेयइस्सं दुहमदृदुग्गं आईणियं दुक्कडिणं पुरत्था ॥२॥ जे केइ बाला इह जीवियही पावाइँ कम्पाइँ करेन्ति रुद्दा । ते घोररूवे तमिसन्धयारे तिव्वाभितावे नरगे पडन्ति ॥ ३॥ तिव्वं तसे पाणिणों थावरे य जे हिंसई आयसुहं पडुच्चा । जे लुसए होइ अदत्तहारी न सिक्खई सेयवियस्स किंचि ॥४॥