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अप्पच्छंदमईओ पत्थियओ गंतुकामो य” ॥ (१४४७ नि.) "विणओणएहिं पंजलियडेहिं छदमणुयत्तमाणेहिं । आराहिओ गुरुजणो सुर्य बहुविहं लहुँ देइ” (१४५१ नि.) " सेलघण-कुडग-चालणि-परिपूणग-हंस-महिस-मेसे य । मसग-जलूग-बिराली जाहग-गो-भेरी आहेरी"॥(१४५४नि.) बुढेऽवि दोणमेहे न कण्हभोमाओ लोट्टए उदयं । गहण-धरणासमत्थे इय देयमछित्तिकारिम्मि ॥ (१४५८) " उद्देसे निइसे य निग्गमे खेत्त-काल-पुरिसे य। कारण-पञ्चय-लक्खण-नए-समोयारणा-णुमए १२"(१४८४)नि.) "किं कइविहं कस्स कहिं केमु कह केचिरं हवइ कालं । कइ संतरमविरहियं भवा-गरिस-फोसण-निरुत्ती२६॥(१४८५नि.) गुणपञ्चक्खत्तणओ गुणीवि जीवो घडोब पञ्चक्खो। घडओऽवि घेप्पइ गुणी गुणमेत्तग्गहणओ जम्हा ॥ (१५५८) अथिदिय-विसयाणं आयाणादेयभावओऽवस । कम्मार इवादाया लोए संडास-लोहाणं ॥ (१५६८) भोत्ता देहाईणं भोजत्तणओ नरोध भत्तस्स । संघायाइत्तणओ अस्थि य अत्थी घरस्सेव ॥ (१५६९) जीवोत्ति सत्ययमिणं सुद्धत्तणओ घडाभिहाणं व । जेणऽत्येण सदत्यं सो जीवो, अह मई होज ॥ (१५७५) एगत्ते सबगयत्तओ न मोक्खादओ नभस्सेव । कत्ता भोत्ता मंता न य संसारी जहागासं ॥ (१५८४) एगत्ते नत्थि मुही बहूवघाचि देसनिरुइव । बहुतरवदत्तणो न य मुक्को देसमुक्को व ॥ (१५८५)