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________________ (बीकानेर) में इनकी दीक्षा सम्पन्न हुई थी। दीक्षानाम धर्मरङ्ग था। विक्रम संवत् १५५५ अहमदाबाद में इनको आचार्य पद पर स्थापित किया गया था। जिसका पद महोत्सव १५५६ में बीकानेर में हुआ था। बीकानेर के मंत्री बोहिथरा गोत्रीय कर्मसी ने किया था और इस महोत्सव में उन्होंने पीरोजी लाख रुपये व्यय किये थे। श्री शान्तिसागरसूरि ने इनको सूरिमन्त्र प्रदान किया था। बीकानेर में ही नेमीनाथ मन्दिर की प्रतिष्ठा की थी। तदनन्तर एक बार आगरा निवासी संघवी डूंगरसी, मेघराज, पोमदत्त प्रमुख संघ के आग्रहपूर्वक बुलाने पर आप आगरा नगर गये। उस समय बादशाह के भेजे हुये घोड़े, पालकी, बाजे, छत्र, चँवर आदि के आडम्बर से आपका प्रवेशोत्सव कराया गया। इस उत्सव में गुरुभक्ति, संघभक्ति आदि कार्य में दो लाख रुपये व्यय हुए थे। सजावट बड़ी दर्शनीय हुई थी। लोगों की भीड़ से मार्ग संकीर्ण हो गए थे। दिल्लीपति बादशाह सिकंदर गजारुढ़ होकर अमीर, उमराव, वजीर आदि अमलदारों के साथ सामने आये थे। वाजित्र बज रहे थे। श्राविकाएँ अपने मस्तक पर मंगलकलश धारण कर गुरुश्री को मोतियों से बधा रहीं थीं। रजत मुद्रा (रुपयों) के साथ पान (तांबूल) दिये गये। इस यशस्वी कार्य से बादशाह को बड़ा आश्चर्य हुआ। चुगलखोरों के बहकाने से सूरिजी को राजसभा में बुला कर करामात दिखाने के लिए आग्रह किया, क्योंकि उसे श्री जिनप्रभसूरिजी के चमत्कारों की बातें कर्णगोचर थीं। उन्हें दीवान-दरबार धवलगृह में रखा। पूज्यश्री ने तपस्या और ध्यान प्रारम्भ किया। यथासमय श्रीजिनदत्तसूरिजी के प्रसाद और चौसठ योगिनियों के सान्निध्य से चमत्कार हुआ। सूरिजी ने दैवी शक्ति से बादशाह का मनोरंजन कर पाँच सौ बन्दीजनों को कैद से छुड़ाया और अभय घोषणा से सुयश प्राप्त कर उपाश्रय पधारे। सारा संघ बड़ा हर्षित हुआ। आपने तीन नगरों में प्रतिष्ठाएँ कीं। अनेकों संघपति प्रमुख पद पर स्थापित किये। सं० १५८२ में 'आचारांग दीपिका' की बीकानेर में रचना की। पाटण नगर में तीन दिन अनशन करके सं० १५८२ में स्वर्गवासी हुए। सं० १५८७ में श्री जिनमाणिक्यसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठित आपके चरण जैसलमेर के श्री पार्श्वनाथ जिनालय में हैं। महोपाध्याय धवलचन्द्र और वाचक गजसार आदि इन्हीं के शिष्य थे। (खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास पृष्ठ २२०)
SR No.002344
Book TitlePrashnottaraikshashti Shatkkavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri, Somchandrasuri, Vinaysagar
PublisherRander Road Jain Sangh
Publication Year2008
Total Pages186
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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