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अवत्थं गओ असुहमन्नं । भुजं न तंमि रजइ सुहभोयणलालसो धणियं ॥९२।। इय सुद्धचरणरसिओ सेवंतो दव्वओ विरुध्धपि । सद्धागुणेण एसो न भावचरणं अइक्कमइ ॥१३॥ तित्तिं न चेव विदइ सद्धाजोगेण नाणचरणेसु । वेयावच्चतवाईसु जहविरियं भावओ जयइ ॥९४।।卐 सुगुरुसमीवे सम्म सिध्धंतपयाण मुणियतत्तत्थो । तयणुन्नाओ धन्नो मज्झत्थो देसणं कुणइ ॥९५।। अवगयपत्तरूवो तयणुग्गहहेउमाववुढिकरं । सत्तभणियं परूवइ वजंतो दूरमुम्मग्गं ॥९६।। सव्वंपि जओ दाणं दिन्नं पत्तंमि दायगाण हियं । इहरा अणत्थजणगं पहाणदाणं च सुयदाणं ॥९७।। सुट्ठयरं च न देयं एयमपत्तंमि नायतत्तेहिं । इय देसणाऽवि सुद्ध इहरा मिच्छत्तगमणाई ॥१८॥॥ जं च न सुत्ते विहियं न य पडिसिद्ध जणंमि चिररूढं । समइविगप्पियदोसा तपि न दूसंति गीयत्था ॥९९॥ संविग्गा गीयतमा विहिरसिया पुव्वसूरिणो आसि । तददूसियमायरियं अणइसई को निवारेइ ॥१००॥ अइसाहसमेयं जं उस्सुत्तपरूवणा कडुविवागा । जाणतेहिवि दिजइ निदेसो सुत्तबज्झत्थे ॥१८१॥ दीसंति य ढड्ढसिणोणेगे नियमइपउत्तजुत्तीहि । विहिपडिसेहपवत्ता चेइयकिच्चेसु रूढेसु ॥१८२॥ तं पुण विसुद्धसद्धा सुयसंवायं विणा न संसंति । अवहीरिऊण नवरं सुयाणुरूवं परूविंति ॥१०३।। अइयारमलकलंकं पमायमाईहिं कहवि चरणस्स। जणियंपि वियडणाए सोहिंति मुणी विमलसद्धा ॥१०४॥ एसा पवरा सद्धा अणुबद्धा होइ भावसाहुस्स । एईए सम्भावे *पन्नवणिजो हवइ एसो ॥१०५॥ विहिउज्जमवन्नयभयउस्सग्गववायतदुभयगयाइं । सुत्ताइं बहुविहाइं समए गंभीरभावाई ।१०६॥ तेसिं विसयविभागं अमुणंतो नाणवरणकम्मुदया। मुज्झइ जीवो तत्तो सपरेसिमसग्गहं जणइ ॥१८७॥ तं पुण संविग्गगुरू
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