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जैसे उदाहरणस्वरूप-वि. सं. १३६९ की साल में मुस्लिमों ने जैनों के महान् तीर्थ श्री शत्रुञ्जय के सभी मन्दिरों का विनाश किया । उसको वि. सं. १३७१ की साल में ही स्वनामधन्य श्रेष्ठिवर्य समरसिंह ने करोड़ों का द्रव्य खर्च करके दो वर्ष की अल्प अवधि में पुनः श्री शत्रुञ्जय महातीर्थ को स्वर्ग के विमान सदृश जिनमन्दिरों से विभूषित कर दिया। __उन अनार्यों के समय में भी आर्य लोंगों की सद्धर्म के प्रति और मन्दिर-मूत्तियों पर कैसी अटूट श्रद्धा थी, यह इस बात का ज्वलन्त उदाहरण है ।
विक्रम की सोलहवीं शताब्दी भारतवर्ष के लिए महादुःखमय और भयंकर कलंक रूप साबित हुई थी। आर्य देश के कई व्यक्तियों पर अनार्य संस्कृति का दोषपूर्ण प्रभाव पड़ चुका था तथा तद् फलस्वरूप उन अज्ञानी व्यक्तियों ने बिना कुछ सोचे समझे अनार्य संस्कृति का अन्धानुकरण करके आर्य मन्दिरों एवं मूत्तियों की ओर क्रूर दृष्टि से देखना भी प्रारम्भ कर दिया था। जैसे-(१) श्री श्वेताम्बर जैनों में लोंकाशा, (२) दिगम्बर जैनों में तारण स्वामी, (३) वैष्णवों में रामचरण, (४) सिक्खों में गुरु नानक, (५) जुलाहों में कबीर और (६) अंग्रेजों में मार्टिन लूथर
. मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-२७