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आर्य प्रजा में ही नहीं, किन्तु पाश्चात्य प्रदेशों में भी मूत्तिपूजा का बहुत ही प्रचार था, ऐसे ऐतिहासिक प्रमाण भी उपलब्ध हैं । श्री विक्रम संवत् की चौदहवीं शताब्दी तक सुप्रसिद्ध जर्मन इत्यादि पाश्चात्य प्रदेशों में भी मूर्तिपूजा का काफी प्रचार था । उस समय उन प्रदेशों में जैनमन्दिर भी विद्यमान थे, जिनके विनाश के अवशेष संशोधन करने पर आज भी मिल रहे हैं ।
जैसे-आस्ट्रेलिया में श्रमण भगवान महावीर परमात्मा की मूत्ति, अमेरिका में ताम्रमय श्री सिद्धचक्र का गट्टा, मंगोलिया प्रान्त में अनेक भग्न मूत्तियों के अवशेष मिले हैं। पुरातन काल में मक्का मदीना में भी जैनमन्दिर थे किन्तु जब वहाँ पर पूजने वाले कोई जैन नहीं रहे तब वे मूतियाँ भारत देश में सुप्रसिद्ध मधुमति (महुवा बन्दर) में लाई गई । इस प्रकार प्राचीन काल में मूर्तिपूजा के अनेक प्रमाण मिलते हैं।
जिस प्रदेश में सबसे पूर्व मूर्तिपूजा का विरोध पैदा हुआ था, वह आज भी मूर्तिपूजा से विहीन नहीं है । व्यक्तिगत कोई मूर्तिपूजा नहीं माने, यह अलग बात है, किन्तु आधुनिक देशाटन वालों की जानकारी से यह बात छिपी
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-२४