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जैनधर्मदिवाकर-राजस्थानदीपक - मरुधरदेशोद्धा१. रक-शास्त्रविशारद - साहित्यरत्न - कविभूषण-परमोप
कारी-परमपूज्य-सुगुरुदेव प्राचार्य भगवन्त श्रीमद् * विजय सुशील सूरीश्वरजी म. सा. !
आपश्री ने विक्रम सं. २०२८ ज्येष्ठ (वैशाख) * वद पंचमी के दिन जन्मभूमि जावालनगर में ही भव* कूप में से मेरा उद्धार कर श्री पारमेश्वरी प्रव्रज्या * (भागवती दीक्षा) प्रदान की। शास्त्राध्ययन और
विधिपूर्वक योगोद्वहन करवाया तथा सम्यग्दर्शन, * सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की निर्मल अाराधना में दिन-प्रतिदिन आगे बढ़ाया तथा गरिण-पंन्यास पद प्रदान किया, इत्यादि अनेक उपकारों के प्रत्युपकार की मुझ में तथाप्रकार की अल्प भी शक्ति न होते हुए भी उन
अगणित परोपकारों की स्मृति में यह आप द्वारा रचित है 'मूत्ति की सिद्धि एवं मूत्तिपूजा की प्राचीनता' नामक है ग्रन्थरत्न आपके ही कर-कमलों में सादर-बहुमानपूर्वक समर्पित करता हुआ मैं अत्यन्त आनन्दित होता हूँ।
आपका लघुशिष्य-बालमुनि पंन्यास जिनोत्तम विजय गणि