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अनन्त पुण्योपार्जन पयाहियेण पावइ वरिस सयं फलं तमो जिणे महिए । पावइ वरिस सहस्सं अणंतं पुण्णं जिणे थुरिणए ।
अर्थ-प्रदक्षिणा देने से सौ वर्ष के उपवास का फल प्राप्त करता है । श्री जिनेश्वर भगवान की पूजा करने से एक हजार वर्ष के उपवास का फल प्राप्त करता है और श्री जिनेश्वरदेव की स्तुति करने से जीव अनंत पुण्य का उपार्जन करता है ।
000 ___ अपना मुख्य कर्तव्य विश्व के प्रत्येक प्राणी को अपने जन्म, अपने जीवन और अपनी ज्ञान-विज्ञान-बुद्धि को सार्थक करने के लिये वीतराग विभु को मूत्ति-प्रतिमा के दर्शन, वन्दन एवं पूजन-पूजा तथा स्तुति-स्तवन-गीतगान-ध्यान इत्यादि शुभ कार्यों में अपना दिल अवश्यमेव जोड़ना चाहिए, यही अपना प्रधान मुख्य कर्तव्य है, क्योंकि जैसे वीतराग विभु-जिनेश्वर भगवान परमानंदमय हैं, वैसे ही उनकी विधि-विधानपूर्वक अंजनशलाका-प्राणप्रतिष्ठा की हुई मूत्ति-प्रतिमा है।
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मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा को प्राचीनता-३२३