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अर्थ-श्री जिनेश्वर देवों का दर्शन करने से तथा साधु पुरुषों को वन्दन करने से-छिद्रवाले हाथ में जिस तरह जल टिक नहीं सकता है, उसी तरह दीर्घकाल पर्यन्त पाप टिकता नहीं है।
הסם
जिनेश्वर भगवान साक्षात् कल्पवृक्ष हैं दर्शनाद् दुरितध्वंसी, वन्दनाद् वाञ्छितप्रदः । पूजनात् पूरकः श्रीणां, जिनः साक्षात् सुरद्रुमः ॥
अर्थ-श्री जिनेश्वरदेव का दर्शन पाप का विनाश करता है, वन्दन वाञ्छित को देने वाला होता है और पूजन लक्ष्मी को पूरने वाला होता है। इसलिए श्री जिनेश्वर भगवान साक्षात् कल्पवृक्ष हैं।
जिनमन्दिर जाने का अपूर्व फल संपत्तो जिणभवणे पावइ, छम्मासिनं फलं पुरिसो। संवच्छरिनं तु फलं, दारदेसट्ठियो लहइ ॥
अर्थ-श्री जिनभवन को प्राप्त हा पुरुष छह मास के उपवास का फल प्राप्त करता है और द्वारदेशे अर्थात् गभारा के पास में पहुँचा हुआ पुरुष एक वर्ष के उपवास का फल प्राप्त करता है ।
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मूत्ति की सिद्धि एवं मूत्तिपूजा की प्राचीनता-३२२