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उस समय श्रीसंघ की ओर से कम्बल वहोराने का विशिष्ट चढ़ावा बोलकर प्रदेश लेने वाले श्रीमान् मोहनलालजी तथा श्रीमान् केसरीमलजी एवं ताराचन्दजी आदि अम्बावत परिवार ने पूज्यपाद गुरुदेव प्राचार्य म. सा. को कम्बल वहोराने का लाभ लिया । अन्त में, सर्वमंगल के बाद श्रीसंघ की ओर से प्रभावना हुई । तथा श्री जिनेन्द्र भक्ति रूप 'प्रष्टाका - महोत्सव' का प्रारम्भ श्री विमलनाथ जिनमन्दिर में हुआ । श्री पार्श्वनाथ पंचकल्याणक पूजा भी प्रभावनायुक्त पढ़ाई गई ।
उसी दिन संघ में प्रायम्बिल की तपश्चर्या हुई तथा श्रीसंघ की तरफ से दो टंक का स्वामिवात्सल्य भी हुआ । प्रातः काल का श्रीमान् पन्नालाल पूनमचन्द अम्बावत का तथा शाम का श्री जिनेन्द्र युवा मण्डल का था । प्रतिदिन व्याख्यान, प्रभु-पूजा, प्रभावना तथा प्रांगी रोशनी एवं रात को भावना का कार्यक्रम चालू रहा। बाहर से वन्दनार्थ आने वाले साधर्मिक बन्धुओं की भक्ति का लाभ अहर्निश संघ को मिलता रहा ।
आषाढ़ सुद ४ शुक्रवार दिनांक ७ ७ ८६ के दिन
मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता - २८२