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पूज्य मुनिराज श्री प्रमोद विजयजी म. सा., पूज्य मुनिराज श्री जिनोत्तम विजयजी म. सा., पूज्य मुनिराज श्री अरिहन्त विजयजी म. सा तथा पूज्य मुनिराज श्री रविचन्द्र विजयजी म. सा. आदि मुनिमंडल समेत एवं पूज्य साध्वी श्री हेमलता श्रीजी म. आदि ठाणा-८ तथा पूज्य साध्वी श्री स्नेहलता श्रीजी म. आदि ठाणा-११ युक्त, देसूरी श्री जैनसंघ के अदम्य उत्साह के साथ हाथी, घोड़े, बैन्ड आदि तथा जैन-जैनेतर विशाल जनता युक्त भव्य स्वागतपूर्वक चातुर्मासार्थ मंगल प्रवेश किया। अनेक स्थलों में विविध गहुंलियाँ हुईं। श्री शान्तिनाथश्री विमलनाथ, श्री सम्भवनाथ, श्री चन्द्रप्रभस्वामी इन चारों जिनमन्दिरों के दर्शन किये। पश्चात् 'श्री पोरवाल भवन' में चातुर्मासार्थ मंगल प्रवेश किया। प्रवचन के पाट पर प्रवचनपटु पूज्यपाद प्राचार्य महाराज साहब आदि बिराजमान हुए।
स्वागत-गीत होने के पश्चात् पूज्यपाद प्राचार्य म. सा. का मंगलप्रवचन तथा 'चातुर्मास की विशिष्टता' पर प्रभावपूर्ण प्रवचन होने के बाद, पूज्यपाद प्रा. म. सा. के लघु शिष्यरत्न विद्वान् सुमधुरप्रवचनकार पूज्य मुनिराज श्री जिनोत्तन विजयजी म. श्री का भी प्रवचन हुआ।
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-२८१