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सूत्र रह्या नियुक्ति बीती, या तें किम करी जाणीजी । आचारिज रचिया नहि मानो, सुणजो आगे वाणीजी ॥
प्रतिमा० ॥ ३० ॥
तीन छेद भद्रबाहु रचिया, पनवणा श्यामाचारजी। दशवैकालिक सिजंभवकृत, निशीथ विशाखा गणधारजी ॥
प्रतिमा० ॥ ३१ ॥ देवढिगणीजी नन्दी बनाइ, घणा सूत्रना नामजी । ज्यं वृत्ति रा कर्ता जाणो, भद्रबाहु स्वामीजी ॥
प्रतिमा० ॥ ३२ ॥ प्रकरणमां सुंढाल-चोपइयां, प्रतिमा देवो गोपजी । त्रीजो महाव्रत चवडे भांगो, जिन आज्ञादि विलोपजी ॥
प्रतिमा० ॥ ३३ ॥
एक अक्षर उत्थापे जिणरो, वधे अनंत संसारजी । सूत्र का सूत्र नहि माने, ए डूबे डुबावणहारजी ॥
प्रतिमा० ॥ ३४ ॥
बत्रीस सूत्रा में प्रतिमा बोले, चतुरां लीजो जोयजी । भावदया मुज घटमा व्यापी, उपकार बुद्धि छे मोयजी ॥
प्रतिमा० ॥ ३५ ॥
. मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-२७५