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तीन गुण सुप्रसिद्ध हैं -- सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र | उन्हीं के विकास के लिये एवं उन्हीं गुणों की सम्यग् आराधना के लिये अपने आगमशास्त्रों में अनेक अनुष्ठान बतलाये हैं ।
इसमें दर्शनविशुद्धि का महान् प्रालम्बन जिनबिम्बजिनमूर्ति - जिनप्रतिमा है । वीतराग परमात्मा जिनेश्वरदेव के दर्शन, वन्दन एवं पूजन से ही अन्त में आत्मदर्शन होता है । जैसे ज्योति से ज्योति प्रगट होती है, वैसे ही वीतराग परमात्मा के दर्शनादिक से आत्मस्वरूप की पहचान होती है । जिनमूर्ति प्रभुप्रतिमा के आलम्बनयोग से ही आत्मा को अपनी प्रभुता का ख्याल आता है । इससे यह सिद्ध होता है कि संसारी आत्मा को परमात्मा बनने के लिये सारे विश्व में सर्वश्रेष्ठ आलम्बन जिनबिम्ब एवं जिनागम ही हैं । उनकी तुलना में अन्य कोई श्रेष्ठ आलम्बन नहीं हैं ।
(२) अनादिकालीन आकार
अनादिकालीन विश्व के साथ मूर्ति एवं मूर्तिपूजा का घनिष्ट सम्बन्ध है अर्थात् मूर्ति एवं मूर्तिपूजा का इतिहास मानव जाति के साथ जुड़ा हुआ है । इस विश्व
मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता - ५