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इस पंचम पारे में और हुंडावसर्पिणी काल में भव्यात्माओं को सर्वज्ञ विभु श्री जिनेश्वर भगवन्तभाषित जैनशासन-जैनधर्म में जिनागम-शास्त्र और जिनमूत्ति ये दोनों ही परम पालम्बन एवं सर्वोत्तम आधारभूत हैं।
प्रस्तुत 'मूत्ति की सिद्धि एवं मूत्तिपूजा की प्राचीनता' का माहात्म्य प्रदर्शित करने वाला यह आलेख मुख्य जिनागम का तथा मुद्रित 'मूर्तिपूजा का प्राचीन इतिहास' 'प्रतिमा पूजन' एवं 'मूत्तिपूजा' आदि पुस्तकों का पालम्बन लेकर और चिन्तन-मननपूर्वक लिखा है ।
इस लेख में मेरे मतिमन्दतादिक कारणों से श्री जिनाज्ञा के विरुद्ध जाने या अनजाने कुछ भी मेरे द्वारा लिखा गया हो तो उसके लिए मन-वचन-काया से मैं 'मिच्छा मि दुक्कडं' देता हुआ विराम पाता हूँ।
'जैनं जयति शासनम्' +
मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-२३६