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उपसंहार
इस संसार में भव्य जीवों का अन्तिम ध्येय जन्म और मरण के महान् दुःखों को सर्वथा विनष्ट कर, मोक्ष का शाश्वत सुख प्राप्त करने का ही होता है । इस उद्देश्य की सिद्धि के लिए अन्यान्य अनेक साधनों में देवाधिदेव श्री वीतराग विभु की निर्विकारो, प्रशान्त मुद्रा एवं ध्यानावस्थित अतिभव्य मनोहर मूर्ति-प्रतिमा एक मुख्य सर्वोत्कृष्ट-सर्वोत्तम साधन है। इस साधन द्वारा भूतकाल में भव्यजीवों ने अपना आत्मश्रेय किया है, वर्तमानकाल में करते हैं और भविष्यत्काल में भी अवश्य ही करेंगे।
भूतकाल में समस्त संसार मूर्तिपूजक था और आज भी किसी-न-किसी प्रकार से मूर्ति का सादर बहुमानपूर्वक अनुपम सत्कार सारे विश्व में हो रहा है। भविष्यत्काल में भी जहाँ तक जगत् का अस्तित्व है वहाँ तक मूर्ति की चिरस्थायी सत्ता सदा काल रहने वाली है।
. मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-२३५