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+ ॐ ह्रीं अहं नमः ॥ ॥ शासनसम्राट-श्री विजयनेमिसूरीश्वर-परमगुरुभ्यो नमः ॥ ॥ साहित्यसम्राट्-श्रीविजयलावण्यसूरीश्वर-प्रगुरुभ्यो नमः ॥
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मूत्ति की सिद्धि
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एवं
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मूत्तिपूजा की प्राचीनता
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* मंगलाचरणम् सकलार्हत-प्रतिष्ठान-मधिष्ठानं शिवश्रियः । भूर्भुवः स्वस्त्रयीशान-मार्हन्त्यं प्ररिणदध्महे ॥१॥
अर्थ-सभी अरिहन्तों की प्रतिष्ठा के कारण, मोक्षलक्ष्मी के आधार, पाताल, मृत्युलोक और स्वर्ग, इन तीनों लोकों के स्वामी ऐसे अर्हत् पद का हम ध्यान करते हैं ॥ १ ॥
नामाकृतिद्रव्यभावः, पुनतस्त्रिजगज्जनम् । क्षेत्रे काले च सर्वस्मिन्नर्हतः समुपास्महे ॥२॥
त-१
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१