________________
द्वारे प्राया जब जिनमन्दिर के। फल पाता एक वर्ष उपवास के । समय मिला देव - दर्शन का....
प्रो पातमा ! ० ॥ (8) प्रदक्षिणा तीन जिनचैत्य को देता। फल शत वर्ष उपवास का पाता। समय मिला प्रभु - मिलन का....
प्रो पातमा ! ० ॥ (१०) जिनराज को ही नजरे निहालतां । फल सहस वर्ष उपवास का पाता । समय मिला प्रभु चिन्तन का....
श्रो पातमा !० ॥ (११)
भाव से जिणन्द को वन्दन करता । फल अनन्त भवि वहाँ हो पाता । समय मिला निज कर्म-क्षय का....
प्रो पातमा ! ० ॥ (१२) जब जिणन्द को भाव से पूजता । शत गुरण पुण्य भवि वहाँ हो पाता। समय मिला पुण्य कमाऊँ का....
प्रो पातमा ! ० ॥ (१३)
. मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-२१३