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जिनवर बिम्ब विना नवि वंदु, आणंदजी एम बोले रे ; सातमे अंगे समकित मूले, अवर नहि तस तोले रे । शान्ति जिनेश्वर ० (५)
ज्ञातासूत्रे द्रौपदी पूजा करती राय सिद्धारथे प्रतिमा पूजी,
शिवसुख मांगे रे ; कल्पसूत्र मांहे रागे रे । शान्ति जिनेश्वर ० ( ६ )
विद्याचाररण मुनिवरे वंदी, प्रतिमा पांचमे अंगे जंघाचारण मुनिवरे वंदी, जिनप्रतिमा मन रंगे शान्ति जिनेश्वर ० ( ७ )
रे ।
रे
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प्रार्य सुहस्ति सूरि उपदेशे, चावो सम्प्रतिराय रे ; सवा कोडि जिनबिम्ब भराव्यां, धन्य-धन्य एहनी माय रे । शान्ति जिनेश्वर ० ( ८ )
मोकली प्रतिमा अभयकुमारे, देखी श्रार्द्र कुमार रे ; जातिस्मरणे समकित पामी, वरीयो शिवसुख सार रे । शान्ति जिनेश्वर ० ( C )
इत्यादिक बहु पाठ का छे, सूत्र मांहे सुखकारी रे : सूत्र तणो एक वर्ण उत्थापे, ते कह्यो बहुल संसारी रे | शान्ति जिनेश्वर ० ( १० )
मूर्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता - १६७