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________________ ॐ श्री अजितनाथ भगवाननी स्तुति 8. जे स्वामी ए भवनभरना भाव सर्वे निहाल्या , वाणी द्वारा समवसरणे सर्व आगे प्रकाश्या । जेने गूंथ्या गणधर गणे शुद्ध सिद्धान्तमांहे , एवा ते श्री अजितजिन ने वन्दु हुं तीर्थ माहे ॥ २ ॥ ॐ श्री सम्भवनाथ भगवाननी स्तुति ॐ कापे-कापे सकल करमो सर्वदा दुःखकारी , आपे-पापे भविक जनने पंचमज्ञान भारी । स्थापे-स्थापे शिवभुवनमां नित्य आनन्दकारी , एवा श्री सम्भवजिन कने मांगुं हुं सिद्धि सारी ॥ ३ ॥ ॐ श्री अभिनन्दन भगवाननी स्तुति * चारे द्वारो चउ गति तणां सर्वदा बन्ध कीधा , ने कर्मो सौ हृदय तप धरी सर्वथा दूर कीधा । जाणी भावो निखिल जगना मोक्षधामे बिराज्या , एवा चौथा जिनपति तने दृष्टिथी में निहाल्या ॥ ४ ॥ __ॐ श्री सुमतिनाथ भगवाननी स्तुति * मुद्रा मोहे सुमति जिननी विश्वमां श्रेयकारी , नावे तोले जगतभरनी कोइ मुद्रा विकारी । ध्यावे जेने सुरनरवरो प्रेमथी चित्त मांहे , एवी मुद्रा सुमतिप्रभुनी ध्यानु हु ध्यान महे ॥ ५ ॥ मूति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१७४
SR No.002340
Book TitleMurti Ki Siddhi Evam Murti Pooja ki Prachinta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri
PublisherSushilsuri Jain Gyanmandir
Publication Year1990
Total Pages348
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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