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इस विषय को सही रूप में समझने के लिए और समझाने के लिए शास्त्रीय प्राचीन-अर्वाचीन युक्ति युक्त अनेक पुरावा तथा उदाहरण-दृष्टान्तों सहित इस ग्रन्थरत्न के लेखक पूज्यपाद आचार्य महाराजश्री ने आगमशास्त्रों का तथा मूर्तिपूजा विषयक मुद्रित अनेक ग्रन्थोंपुस्तकों आदि का अवलोकन कर और चिन्तन-मनन कर अतीव सुन्दर अालेखन अपने पट्टधर-शिष्यरत्न मधुरभाषी पूज्य उपाध्याय श्री विनोद विजयजी महाराज की सत् प्रेरणा से सरल हिन्दी भाषा में सुन्दर रीत्या किया है ।
इसका सम्पादन कार्य पूज्यपाद आचार्य म. सा. के पट्टधर-शिष्य रत्न सुमधुर प्रवचनकार पूज्य पंन्यास श्री जिनोत्तम विजयजी महाराज ने सावधानी पूर्वक किया है।
इस ग्रन्थरत्न के स्वच्छ, शुद्ध एवं निर्दोष प्रकाशन का कार्य डॉ. चेतनप्रकाशजी पाटनी की देख-रेख में सम्पन्न हुआ है।
ग्रन्थरत्न की प्रस्तावना लिखने वाले सिरोही वाले प्रोफेसर डॉ. अमृतलालजी गांधी जोधपुरनिवासी हैं ।
पूज्यपाद आचार्य म. सा. की आज्ञानुसार हमारे