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प्रकाशकीय निवेदन momomomommon
'मूत्ति की सिद्धि एवं मूत्तिपूजा की प्राचीनता' नाम से समलंकृत यह ग्रन्थरत्न प्रकाशित करते हुए हमें अत्यन्त ही आनन्द हो रहा है।
इस ग्रन्थरत्न के लेखक शासनसम्राट समुदाय के सुप्रसिद्ध, १०८ ग्रन्थों के सर्जक, जैनधर्म-दिवाकर, राजस्थानदीपक, मरुधरदेशोद्धारक एवं शास्त्रविशारद परमपूज्य आचार्यदेव श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वरजी म. सा. हैं।
जगत् में मूत्ति की सिद्धि किस तरह से हो सकती है ? मूर्तिपूजा की प्राचीनता कितने वर्षों से है ? और अपने देवाधिदेव वीतराग विभु श्री जिनेश्वर भगवान के दर्शन एवं पूजन-पूजादि विधिपूर्वक करने से जीव-आत्मा को क्या-क्या लाभ मिलते हैं ?
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