________________
जैन आगम-सिद्धान्तशास्त्रों में जिनमूत्ति-जिनप्रतिमा की यात्रा, दर्शन-वन्दन एवं पूजन करने का अधिकार कहाँ-कहाँ पर है, उसका निर्देश यानी उल्लेख निम्नलिखित है
(१) पंचमाङ्ग पूज्य श्री भगवतीजी सूत्र के बीसवें शतक के नवमे उद्देश में 'जंघाचारण एवं विद्याचारण' मुनियों द्वारा नन्दीश्वर द्वीप और रुचक द्वीप में विद्या के बल से जाकर वहाँ रही हुई शाश्वत जिनमुत्ति-प्रतिमाओं को वन्दन करने का स्पष्ट अधिकार है, ऐसा कहा है।
लब्धिवन्त विद्याचारण मुनि विद्या के बल से यहाँ से एक ही कदम उठकर जहाँ मानुषोत्तर पर्वत है, वहाँ पर पहुँच जाते हैं और वहाँ से दूसरा कदम उठाकर सीधे श्री नंदीश्वर द्वीप में पहुँच जाते हैं। विद्या के बल से आये हुए विद्याचारण मुनि और जंघा के बल से आये हुए जंघाचारण मुनि वहाँ के जिनचैत्यों को एवं शाश्वत जिनमूत्ति-प्रतिमाओं को वन्दन करते हैं ।
इस विषय में सर्वज्ञ विभु श्री महावीर परमात्मा को अपने प्रथम गणधर श्री गौतमस्वामी महाराज ने प्रश्न किया ? अर्थात् पूछा कि--
__
मूत्ति की सिद्धि एवं मूर्तिपूजा की प्राचीनता-१०६