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भग्नावशेष मिले हैं। मूर्ति के सम्बन्ध में विभिन्न धर्मावलम्बियों के दृष्टिकोणों को भी उद्धृत करते हुए उन पर तर्कपूर्ण रूप से पुस्तक में विवेचन किया गया है ।
पुस्तक सरल भाषा में परन्तु सारगर्भित रूप से विषय को पूर्णतया स्पष्ट करते हुए लिखी गई है जो लेखक के पुस्तक-लेखन के दीर्घ अनुभव का द्योतक है ।
मैं गुरु चरणों में वन्दन करते हुए व इस कृति की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए लेखक प्राचार्य सुशील सूरीश्वरजी का अपने मन-मस्तिष्क से सादर अभिनन्दन करता हूँ ।
- डॉ० अमृतलाल गांधी अवकाशप्राप्त प्राध्यापक ( राजनीति शास्त्र ) जोधपुर विश्वविद्यालय
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