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________________ ( ७८ ) इनका ऋण चुकाने के लिए, इनके बताये हुए सन्मार्ग पर चलने के लिए और इनके ही समान बनने के लिए अहर्निश इनका दर्शन, वन्दन और पूजन इत्यादि अवश्यमेव करना चाहिए । वीतराग श्रीजिनेश्वरदेव के दर्शनादि करने के लिए जाने के पूर्व बाह्य शुद्धि-शरीर स्वच्छ एवं स्वस्थ होना चाहिए । वस्त्र भी साफ-सुथरे एवं मर्यादापूर्वक ढंग से पहने हुए होने चाहिए । अपने हृदय में उल्लासपूर्ण भावना रखकर घर से रवाना होना चाहिए । अक्षत, नैवेद्य, फल इत्यादि लेकर तथा पूजन करना हो तो भ्रष्टप्रकारी पूजन की सामग्री लेकर जिनमन्दिर जाना चाहिए । दर्शनार्थ जिनमन्दिर में जाने के लिए १० त्रिक का ध्यान रखना अति आवश्यक है । साथ में मार्ग में चलते-चलते जैसे ही जिनमन्दिर का शिखर तथा शिखर पर लहराती ऊँची ध्वजा दिखाई दे तत्काल अपने दोनों हाथ जोड़कर एवं सिर झुकाकर 'नमो जिणाणं' कहते हुए नमस्कार करना चाहिए । जिनमन्दिर के द्वार पर पहुँचते ही पैरों में से जूते निकाल दें | पैर यदि गंदे - खराब हुए हों तो पानी से पैर धोकर ही मन्दिरजी में प्रवेश करें ।
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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