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से यह सिद्ध किया गया है कि मूर्ति और मूर्ति की पूजा युक्तियुक्त है । कारण कि विश्व में प्रवर्त्तमान कोई भी धर्म या कोई भी सम्प्रदाय - समुदाय समाज ऐसा नहीं है जो प्रकारान्तर से भी मूर्ति न मानता हो या मूर्तिपूजा न करता हो । चाहे वह अपने को मूर्तिपूजक न कहता हो या मूर्तिपूजक कहता हो ।
( १ ) मुसलमान लोग मूर्ति नहीं मानते हैं तो भी वे लोग काल्पनिक मूर्ति को तो मानते ही हैं । वे लोग पश्चिम दिशा की ओर अपना मुँह करके 'नमाज' पढ़ते हैं । प्रायः पश्चिम दिशा की तरफ पैर रखकर सोते नहीं हैं और टट्टी पेशाब भी नहीं करते हैं । कारण कि, उनके धर्मस्थानक मक्का-मदीना पश्चिम दिशा में हैं । वहाँ पर पहले मोहम्मद साहब थे, अभी तो नहीं हैं तो भी मानना पड़ेगा कि मानसिक कल्पना के द्वारा मोहम्मद साहब की सत्ता यानी मौजूदगी वहाँ पर मानकर ही उनके प्रति प्रादर बहुमान प्रदर्शित किया जाता है । कब्रिस्तान पर चादर चढ़ाना, पुष्प चढ़ाना और धूपपूजा आदि करना एवं ताजिया बनाना, रखना और जल में डुबोना क्या ये मूर्ति के और मूर्तिपूजा के द्योतक नहीं हैं ? कहना पड़ेगा कि अवश्य ही हैं ।