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________________ उपसंहार समस्त कर्मों के क्षय रूप और अनन्त सुखों के भंडार स्वरूप ऐसे मोक्ष की प्राप्ति के लिए यथाशक्य पुरुषार्थ करना, यही इस दुर्लभ मनुष्यभव में करने योग्य सर्वोत्तमसर्वोत्कृष्ट कार्य है । मोक्षमार्ग की आराधना के लिए अनेक प्रकारों में भक्तिमार्ग सबसे सरल, सुलभ और शीघ्र सिद्ध हो जाय, ऐसा योग है। उसका पालम्बन लेकर प्रात्मा सहेलाई से परमेश्वरपरमात्मा के साथ एकतार हो सकता है। वीतराग परमात्मा के साथ भक्ति द्वारा एकतार होना, यही समस्त योगों में प्रधान-मुख्य योग है । साधारण शिक्षित प्राणीमनुष्य भी इस मार्ग में प्रयाण कर तथा सकल कर्मों का क्षय कर भवनिस्तार एवं आत्मनिस्तार अर्थात् परमपदमोक्ष प्राप्त कर सकता है। भक्तिप्रिय धर्मात्मा-धर्मीजीव एवं संसारवर्ती सभी प्राणी परमेश्वर-परमात्मा की भक्ति में प्रतिदिन लीन-मग्न होकर प्रात्मकल्याण साधे, तथा
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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