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मीराबाई भी कहती हैं किमने चाकर राखोजी, गिरधारीलाल, चाकर राखोजी । चाकर रहे°, बाग बनीशु, नित-नित दर्शन पाशुं , वृन्दावन की कुजगली में, गोविंद लीला गाशु, मने चाकर ।
वीतराग विभु के दासादि बनने वाली और उन्हीं की सेवा करने वाली प्रात्मा अवश्य वीतराग बन सकती है । जिसने प्रभु के चरणारविन्द सेये हैं, वही उनकी दशा को प्राप्त करता है। इसलिए समस्त ज्ञानी पुरुषों ने इसी वीतराग मार्ग की सेवा की है, आज भी सेवा कर रहे हैं और भविष्य में भी अवश्य सेवा करेंगे।
(६) ध्यान-नवधा भक्ति पैकी यह भक्ति का छठा प्रकार है । ध्यान के अनेक प्रकार हैं। उनमें आत्मोन्नतिकारक धर्मध्यान और शुक्लध्यान हैं, तथा अवनतिकारक आर्तध्यान और रौद्रध्यान हैं। प्रात्मा जिसमें मुख्यपने वर्त्तता है वही ध्यान कहा जाता है। उस प्रात्मध्यान की प्राप्ति प्रात्मज्ञान के बिना नहीं हो सकती है। आत्मज्ञान भी यथार्थ बोध की प्राप्ति बिना नहीं हो सकता । साधक व्यक्ति जब इष्टदेव के स्वरूप के या गुणों के चिन्तन में एकतार हो जाता है तब वह स्मरण में से ध्यान में चला जाता है।