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________________ ( ४१ ) श्रवण, कीर्तन तथा स्मरण-चिन्तन इत्यादिक से अंकित साधक व्यक्ति अब प्रभु के घनिष्ट सान्निध्य को चाहता है। उससे वह स्नेह-प्रेम के प्रतीक रूप प्रभु की मूत्ति आदि का अवलम्बन लेकर, उन्हीं के दर्शन, वन्दन एवं पूजन में प्रवृत्त होता है । वन्दन-नमस्कार से अभिमान, अहंकार और गर्व कम होता है तथा शरणागति का स्वीकार होता है । इससे अपने जीवन में प्रादर, बहुमान, नम्रता, विनय और विवेक इत्यादि गुण आ जाते हैं। स्वयं प्रभु के दास-सेवक बन जाते हैं। ___ जैनदर्शन में तो सुबह और शाम के प्रतिक्रमण में प्राते हुए षड़ावश्यक यानी छह आवश्यक में पांचवाँ वन्दन नाम का प्रावश्यक है । वन्दन-नमस्कार करने से क्या-क्या होता है ? तो कहा है कि भावपूर्वक किया हुआ एक नमस्कार भी नरक की स्थिति को कम करता है। जाके वन्दन थकी दोष दुःख दूरहि जावे , जाके वन्दन थकी मुक्तितिय सन्मुख पावे ; जाके वन्दन थकी वन्द्य होवे सुरगन के , ऐसे वीर जिनेश वंदि हौं क्रमयुग तिन के ॥१॥
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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