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( २६ ) * 'प्रभुभक्ति-जिनभक्ति तो मुक्ति की महान् दूती है।' * 'परमात्मा की भक्ति अपनी आत्मा के लिए तो
जनरल टॉनिक है।' * जगत् में श्रेष्ठमार्ग भक्तिमार्ग है। कारण कि वह
ज्ञानमार्ग और योगमार्ग अर्थात् ध्यान मार्ग से भी सरल और सुगम है। क्योंकि, भक्ति के आराधक के पास सद्गुरु का श्रेष्ठ बल है। उसको तो दृढ़ श्रद्धा पूर्वक तन, मन और धन इन तीनों को सद्गुरु के प्रति न्योछावर करके समर्पित हो जाने का है तथा उनके बताये हुए मार्ग पर चलने का है ।
ज्ञान और क्रिया ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। भक्ति प्रेमरूप बिना ज्ञान शून्य ही है तथा ज्ञानी महापुरुष के चरण-कमल में मन को स्थापित किये बिना वह मार्ग सिद्ध नहीं होता है।
__ ज्ञानी महापुरुषों के चरण-कमलों में सर्वभाव समर्पित करके उनकी प्राज्ञा का पाराधन-पालन अवश्य ही करना चाहिए तथा भक्ति करने में किसी भी प्रकार की स्पृहा नहीं होनी चाहिए, न रखनी चाहिए। शास्त्र में भी कहा है कि-"आणाए धम्मो प्राणाए तवो" अर्थात्-प्राज्ञा