________________
( २१ )
जिन्होंने अपने देव भव में देवों के साथ किया तथा श्रीनन्दीश्वरद्वीप इत्यादि स्थलों में शाश्वत जिनबिम्बों की पूजा स्वयं अपने हाथों से की, ऐसे श्रीपार्श्वनाथ प्रभु ने अपने देव भव में ५०० तीर्थंकर भगवन्तों की पूजा भक्ति की। ऐसा अलौकिक प्रबल पुण्य उपार्जित कर इस अवसर्पिणी काल में वे तेईसवें तीर्थंकर पुरुषादानी श्रीपार्श्वनाथ भगवान सारे विश्व में प्रसिद्धि को प्राप्त
(२) श्रीकुमारपाल महाराजा ने अपने पूर्व भव में पाँच कोडि का फूल भगवान को चढ़ाकर श्रीजिनेश्वरदेव की भक्ति की थी, जिसके फलस्वरूप वे अठारह देशों के महाराजा हुए।
(३) श्रीपाल और मयणा विवाह-लग्न के दूसरे दिन श्री जिनेश्वर भगवान के मन्दिर में श्रद्धापूर्वक दर्शन कर प्रभु की स्तुति द्वारा भावपूजा करते हैं। उस समय अधिष्ठायक देव की सहायता से मयरणा को हार
और श्रीपाल को बीजोरा मिलता है। इतना ही नहीं किन्तु श्रीसिद्धचक्र भगवन्त की विधिपूर्वक अाराधना से श्रीपाल का कोढ़ का रोग भी चला जाता है ।