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________________ ( २० ) विलसती है। संसाररूपी समुद्र सुख से रहने योग्य हो जाता है तथा श्रेय साधनरूपी मुक्ति शीघ्र उसके करतल यानी हथेली में लौटने लग जाती है ।। १० ।। श्रीबृहच्छान्ति (बड़ी शान्ति) स्तोत्र में भी कहा है कि उपसर्गाः क्षयं यान्ति, छिद्यन्ते विघ्नवल्लयः । मनः प्रसन्नतामेति, पूज्यमाने जिनेश्वरे ॥ अर्थ-श्री जिनेश्वर प्रभु की पूजा करने से उपसर्गों का क्षय होता है, विघ्नवल्लरियाँ नष्ट हो जाती हैं तथा मन प्रसन्नता का अनुभव करता है । जिनपूजा के सम्बन्ध में और समर्थन में अनेक श्लोक तथा अनेक शास्त्रीय पाठ इत्यादि आज भी पागमशास्त्रों में विद्यमान हैं। जिनपूजा करने में चाहे पुरुष हो, चाहे स्त्री हो दोनों का समान हक है। (१) पाँच भरत क्षेत्र और पाँच ऐरावत क्षेत्र मिलकर दस क्षेत्रों में ५० कल्याणकों को गिनने पर जिनेश्वर भगवन्तों के ५०० कल्याणकों का उत्सव
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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