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(१) जघन्य भावपूजा-"नमो जिणाणं" बोलकर प्रभु की स्तुति करना। बाद में तीन खमासमण देकर 'अरिहंत चेइयाणं' तथा अन्नत्थ० बोलकर एक नवकार का काउसग्ग करके स्तुति बोलना। यह जघन्य भावपूजा है।
(२) मध्यम भावपूजा-प्रभु की अष्टप्रकारी पूजा करने के पश्चात् वर्तमान में चैत्यवन्दन किया जाता है। इरियावहि कर चैत्यवन्दन नमुत्थुणं स्तवन तथा जयवीयराय आदि के बाद एक नवकार काउसग्ग करके स्तुति बोली जाती है। यह मध्यम भावपूजा है ।
(३) उत्कृष्ट भावपूजा-तीन चैत्यवन्दन, पाँच बार नमुत्थुणं स्तवन तथा पाठ थोय से देववन्दन किया जाता है। यह उत्कृष्ट भावपूजा है ।
द्रव्यपूजा करते हुए भाव उत्पन्न होता है। इसलिए भावपूजा में चैत्यवन्दन, स्तवन और स्तुति बोली जाती है।
यह पूजा अष्टप्रकारी, सतरह प्रकारी तथा इक्कीस प्रकारी इत्यादि अनेक प्रकार से होती है ।