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________________ ( १६ ) (अ) अंगपूजा-जलाभिषेक से, फूल-पुष्पों से तथा अलंकार-प्राभूषणों से, इस तरह तीन प्रकार से होती है । चन्दन-केसरपूजा तथा वासक्षेप पूजा इस अंगपूजा के अन्तर्गत आ जाती है। (१) जलपूजा-केसर के जल से, कर्पूर के जल से पुष्पों के जल से और निर्मल सामान्य जल से इस तरह चार प्रकार से होती है। (२) पुष्पपूजा-अत्यन्त सुगन्धित ऐसे गुलाब आदि कमल, चंपा, चमेली तथा मोगरा-मालती इत्यादि पुष्पों से गूंथकर बनाई हुई मालाओं यानी हारों से होती है। बिखरे हुए फूलों-पुष्पों से भी पुष्पपूजा होती है । (३) आभूषणपूजा-मुकुट, कुण्डल तथा रत्न जड़ित हार इत्यादिक से होती है। (प्रा) अग्रपूजा-धूप, दीप, पंखा, चामर, अक्षत, फल तथा नैवेद्य इत्यादि द्वारा होती है। . (इ) भावपूजा-स्तुति-स्तवन इत्यादि द्वारा होती है। वह तीन प्रकार की है। (१) जघन्यभावपूजा, (२) मध्यम भावपूजा तथा (३) उत्कृष्ट भावपूजा ।
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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