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________________ (६ ) महामहोपाध्याय श्रीमद् यशोविजयजी महाराज ने स्वरचित 'प्रतिमाशतक' नामक ग्रन्थ में कहा है किमोहोदामदवानलप्रशमने पाथोदवृष्टिः शमस्रोतानिझरिणी समीहितविधौ कल्पद्रुवल्लिः सताम् । संझारप्रबलान्धकारमथने मार्तण्डचण्डद्युतिजनीत्तिरुपास्यतां शिवसुखे भव्याः पिपासास्ति चेत् ॥ अर्थ-हे भव्यात्मायो ! जो तुम्हें मोक्ष के सुख प्राप्त करने की इच्छा हो तो तुम जिनेश्वर भगवान की मूर्ति की उपासना करो। जो मूत्ति मोहरूपी दावानल को शान्त करने में मेघवृष्टि रूप है, जो समतारूपी प्रवाह देने के लिए सरिता-नदी है, जो सत्पुरुषों को वांछित देने में कल्पलता है, तथा जो भवरूपी. प्रबल अन्धकार का नाश करने में सूर्य की तीव्र प्रभारूप है।
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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