SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परम पूज्याचार्य भगवन्त श्रीमद् विजय सुशील सूरीश्वरजी म. सा. आदि चांदराई पधारे । उनका शा. किसनाजी भारमलजी परिवार की ओर से बैन्डयुक्त स्वागत हुआ । उसी दिन से पूज्यपाद आचार्य म. सा. की शुभ निश्रा में, स्व. श्री सरेमलजी की धर्मपत्नी श्रीमती गेरीबाई द्वारा आराधित श्री वीशस्थानक आदि तपश्चर्या के निमित्त सात छोड़ उद्यापन ( उजवरणा ) युक्त नवाह्निकामहोत्सव प्रारम्भ हुआ । प्रतिदिन प्रवचन, पूजा - प्रभावना, प्रांगी रोशनी तथा रात को भावना का कार्यक्रम चालू रहा पूज्यपाद आचार्य म. सा. ने श्री वर्द्धमान तप की ५६ वीं प्रोली का भी प्रारम्भ किया । श्री सिद्धचक्र महापूजन विधिपूर्वक आज ही पढ़ाई गई । (२) जेठ ( आषाढ़ ) वद १ मंगलवार दिनांक २०-६-८६ के दिन परम पूज्य प्राचार्य श्रीमद् विजय हेमप्रभ सूरीश्वरजी म. सा. प्रादि के स्वागत युक्त यहाँ पधारने से दोनों आचार्य भगवन्त का सुभग संमिलन हुआ । श्रीमान् बाबूलालजी किसनाजी के घर पर दोनों प्राचार्यों ने चतुविध संघ के साथ बैन्डयुक्त पगलियाँ किये । ( ५० )
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy