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________________ एवं दादाइ संघ की ओर से संघपूजा तथा श्री वरकाणा तीर्थ में रथ-इन्द्रध्वज-हाथी-घोड़े एवं बैन्डादि युक्त स्वागत पूर्वक प्रवेश, तीर्थदर्शन, व्याख्यान, पूजा-प्रभावना, स्वामीवात्सल्य एवं रात को भावना का कार्यक्रम हुा । ३. वैशाख सुद १५ शनिवार दिनांक २०-५-८६ के दिन नाडोल में स्वागत, जिनालयों के दर्शन, व्याख्यान, पूजा-प्रभावनादि का कार्यक्रम रहा । विशेष-श्रीमान् रूपचन्दजी कुन्दनमलजी के घर पर सकल संघ के साथ बैन्डयुक्त परम पूज्य आचार्य म. सा. के पावन पगलियाँ हुए। ज्ञानपूजन एवं मंगलप्रवचन के पश्चात् पाँच-पाँच रुपये से संघपूजा हुई। स्वामीवात्सल्य हुआ। रात को भावना का कार्यक्रम रहा । ४. वैशाख [ज्येष्ठ] वद १ रविवार दिनांक २१-५-८६ के दिन नाडलाई में स्वागत, जिनमन्दिरों के दर्शन, व्याख्यान में संघपूजा, प्रभुपूजा एवं रात को भावना का कार्यक्रम रहा। ५. वैशाख (ज्येष्ठ) वद २ सोमवार दिनांक २२-५-८६ के दिन प्रातः सुमेर तीर्थ में स्वागत, पूजाप्रभावना तथा स्वामीवात्सल्य सम्पन्न हुए। शाम को ( ४३ )
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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