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________________ शंखेश्वर केसरियो सार , तारंगे श्री अजित जुहार । अंतरिक वरकारपो पास , . जीरावलो ने थंभरण पास ॥१२॥ गाम नगर पुर पाटण जेह , . जिनवर चैत्य नमूं गुणगेह । विहरमान वंदूं जिन वीश , - सिद्ध अनन्त नमूं निशदीश ॥१३॥ इस प्रकार तीनों लोकों में रहे हुए शाश्वत प्रशाश्वत तीर्थों की तथा जिनमूर्तियों की वन्दना की जाती है । इससे यह सिद्ध होता है कि-लोक में जिनमन्दिर एवं जिनमत्तियाँ भूतकाल में विद्यमान थे। वर्तमान काल में भी विद्यमान हैं तथा भविष्यत्काल में भी विद्यमान रहेंगे। इसलिए जिनमन्दिर और जिनमूत्तियां महर्निश दर्शनीय, वन्दनीय-नमस्करणीय एवं सर्वदा पूजनीय हैं। श्रीवीर सं.-२५१५ विक्रम सं.-२०४५ कार्तिक [मागशर] वद-५ स्थान : . सोमवार जैन धर्मशाला, दिनांक-२८-११-८८ मु.-प्रोसियां तीर्थ [संघमाला का दिन]
SR No.002338
Book TitleJinmandiradi Lekh Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilsuri, Ravichandravijay
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages220
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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